हमारे प्राचीन ऋषि महाऋषियों ने अपने गूढ़ ज्ञान, तपोबल एवं अनुसंधानों के बल पर ज्योतिष विद्या को प्राप्त किया। ज्योतिष शास्त्र हमारे ऋषियों द्वारा प्रदान की गयी इतनी गूढ़ विद्या है के इसकी तह निश्चित नहीं की जा सकती अतः इसमें समय समय पर अनुसन्धान होने ही चाहियें और कालान्तर में बहुतसे ज्योतिषियों द्वारा किये गए ऐसे ही अनुसंधानों से सामने आया "कालसर्प योग" इसलिए इस योग की उपस्थित और परिणाम को नकारा नहीं जासकता।
जब जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु-केतु के अक्ष के एक और आ जाते हैं तो इससे कालसर्प योग की उत्पत्ति होती है और यदि कुंडली यह योग नकारात्मक परिस्थितियों में बन रहा हो तो निश्चित ही ऐसे में व्यक्ति को जीवन में अधिक संघर्ष और परिश्रम का सामना करना पड़ता है। वैसे तो कालसर्प योग की शांति के लिए विभिन्न प्रकार की वैदिक अनुष्ठान और पूजा करायी जाती हैं उनका तो पूरा महत्व है ही परंतु यहाँ हम कालसर्प योग की शांति के ऐसे सरल उपाय बता रहे हैं जिन्हें आप सहज ही दैनिक जीवन में अपनाकर कालसर्प योग के नकारात्मक परिणाम से बच सकते हैं। ..........
1. राहु व केतु के मन्त्र की एक-एक माला प्रतिदिन जाप करें -
ॐ राम राहवे नमः
ॐ केम केतवे नमः
2. जल में दूध, सफ़ेद चन्दन व काले-सफ़ेद तिल मिलकर प्रतिदिन शिवलिंग का अभिषेक करें।
3. प्रतिदिन पक्षियों और कुत्तो को भोजन दें।
4. प्रति माह किसी भी एक शनिवार को सतनजा (सात प्रकार के अनाज) गरीब व्यक्ति को दान दें।
5. नियमित रूप से "महामृत्युंजय" मन्त्र का जाप करें।
6. प्रत्येक शनिवार को सरसो के तेल का परांठा संध्या के समय कुत्ते को खिलाएं।
उपरोक्त उपायों में से श्रद्धापूर्वक किसी को भी नियमित रूप से करने पर निश्चित ही आप कालसर्प योग के
नकारात्मक परिणाम से बच पाएंगे।